
एशिया महाद्वीप की तुलना में उत्तरी अमरीका और यूरोप को हमेशा ही ज़्यादा संपन्न समझा जाता है. ऐसा माना जाता रहा कि एशिया में इन बाकी महाद्वीपों के मुकाबले कम अमीर रहते हैं.
लेकिन पिछले महीने एक फ़िल्म आई, 'क्रेज़ी रिच एशियन्स'. इस फ़िल्म ने इस धारणा को काफ़ी हद तक बदलने का काम किया. इस फ़िल्म में दिखाया गया कि किस तरह एशिया में अमीरों की संख्या बढ़ रही है.
सिंगापुर पर आधारित इस फ़िल्म में शानदार मॉल्स दिखाए गए हैं जिनमें दुनियाभर के महंगे ब्रैंड का सामान रखा हुआ है.
वैसे यह सच्चाई महज़ फ़िल्मी पर्दे तक ही सीमित नहीं है. चैरिटी संस्था ऑक्सफ़ेम के अनुसार एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमीर लोगों की संख्या उत्तरी अमरीका और यूरोप से ज़्यादा हो गई है.
इस महाद्वीप में दुनियाभर के करोड़पति और अरबपति लोग बस रहे हैं.
लेकिन इस सुनहरी सच्चाई का एक दूसरा चेहरा भी है. जितनी तेज़ी से इस महाद्वीप में अमीरों की संख्या बढ़ी है, उतनी ही तेज़ी से यहां ग़ैर बराबरी भी बढ़ी है.
एशिया महाद्वीप दुनियाभर के दो-तिहाई ग़रीब कामगारों का घर है.
ऑक्सफ़ेम के ज़रिए एशिया में चलाए जाने वाले असमानता अभियान के प्रमुख मुस्तफ़ा तालपुर कहते हैं, ''इस पूरे इलाके के बहुत से देशों में पैसों की वजह से ग़ैर बराबरी अब एक ख़तरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है.''
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फ़ोर्ब्स मैगज़ीन के अनुसार मेगा रिच यानी बेहद अमीर लोगों की संख्या में अभी भी अमरीका सबसे ऊपर है. वहां लगभग 585 करोड़पति हैं. लेकिन एशिया महाद्वीप का प्रमुख देश चीन भी अब अमरीका से ज़्यादा पीछे नहीं है. चीन में करोड़पतियों की संख्या 373 है.
वैसे अगर एशिया के सभी देशों में मौजूद करोड़पतियों को मिला लिया जाए तो यह संख्या 600 तक पहुंच जाती है, जो अमरीका से ज़्यादा है. यह जानकारी ऑक्सफ़ेम के ज़रिए सूसी ग्लोबल वेल्थ डेटाबुक 2017 में मौजूद आंकड़ों के विश्लेषण के बाद दी गई.
साल 2008 से 2012 के बीच चीन की सालाना विकास दर 8 प्रतिशत से 11 प्रतिशत के बीच रही, जबकि इसी दौरान अमरीका और यूरोप में आर्थिक संकट बना हुआ था.
न्यूयॉर्क में केपजेमिनी कंपनी में मार्केट इंटेलीजेंस के डिप्टी हेड चिराग ठकराल इस बारे में कहते हैं, ''चीन और भारत जैसे बड़े देशों में जिस तरह से बाज़ार का विस्तार हुआ है, इससे पिछले कुछ सालों में इस पूरे इलाके का आर्थिक तंत्र मज़बूत हो गया है, इसके साथ-साथ जापान, हांगकांग और सिंगापुर जैसे देशों में भी बाज़ार विकसित हुए हैं.''
GETTY IMAGESएशिया के अमीर कौन हैं?
मा हुआतेंग जिन्हें पोनी मा नाम से भी जाना जाता है, फ़िलहाल एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं. फ़ोर्ब्स की साल 2018 में जारी की गई सूची के अनुसार वे दुनिया में 17वें नंबर के अमीर व्यक्ति हैं.
पोनी मा चीन की बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनी टेसेन्ट होल्डिंग्स के मुख्य कार्यकारी हैं. इस कंपनी के पास वीचैट जैसी प्रमुख मैसेजिंग एप का स्वामित्व है. पोनी मा के पास कुल 4 हज़ार 530 करोड़ डॉलर की संपत्ति है.
फ़ोर्ब्स की सूची में शामिल टॉप-20 करोड़पतियों में अलीबाबा कंपनी के प्रमुख जैक मा भी शामिल हैं. उनकी कुल संपत्ति 3 हज़ार 900 करोड़ डॉलर है.
वहीं, टॉप-30 में हांगकांग के ली का-शिंग और चीन के वांग जिआनलिन शामिल हैं.
अगर एशिया महाद्वीप के अलग-अलग देशों में साल 2015 के मुकाबले अब संपत्ति में आई वृद्धि के प्रतिशत को देखें तो इंडोनेशिया में सबसे अधिक 14.3 प्रतिशत और थाईलैंड में 13.3 प्रतिशत वृद्धि दर्ज़ की गई.
चीन में यह प्रतिशत जहां 9.8 है तो वहीं भारत में 10 प्रतिशत है. इस आकलन में उन लोगों की संपत्ति शामिल की गई है जिनकी सालाना आय 10 लाख डॉलर से अधिक है.
GETTY IMAGESएशिया में असामनता
जहां एक ओर एशिया में अमीर लोगों की संख्या बढ़ी है, वहीं संपत्ति में असमानता का स्तर भी लगातार बढ़ता चला गया है.
ऑक्सफ़ेम के विश्लेषण के अनुसार, पिछले साल चीन में अर्जित हुई 79 प्रतिशत संपत्ति महज एक प्रतिशत आबादी के पास चली गई. इसी तरह भारत में भी 73 प्रतिशत संपत्ति का अधिकार देश के शीर्ष एक फ़ीसदी लोगों के पास है.
इसका नतीजा यह है कि साल 2017 में चीन की एक प्रतिशत आबादी के पास देश की 47 प्रतिशत राष्ट्रीय संपत्ति का स्वामित्व है. भारत में भी एक प्रतिशत लोग ही देश की 45 प्रतिशत राष्ट्रीय संपत्ति के मालिक हैं.
एशिया में सबसे अधिक असामनता थाईलैंड में है. इस दक्षिण पूर्वी एशियाई देश में 96 प्रतिशत संपत्ति का अधिकार एक प्रतिशत जनता के पास है.
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में संपत्ति और उसके अधिकार के बीच बढ़ती असमानता की खाई को समझने के लिए गिनी गुणांक के आंकड़े को देखा जा सकता है. साल 1990 से 2014 के बीच इस पूरे इलाके में आर्थिक असमानता में गिनी गुणांक 0.37 से बढ़कर 0.48 हो गया.
अर्थशास्त्र में गिनी गुणांक के तहत किसी देश की संपत्ति और उसका वहां की जनता में बंटवारे को मापा जाता है.
यह आंकड़ा जब 0 होता है तो पूरी तरह समानता मानी जाती है, वहीं यह आंकड़ा जब 1 हो जाता है तो पूरी तरह असामनता मान ली जाती है. इस तरह देखें तो एशिया-प्रशांत महाद्वीप में आर्थिक असमानता का आंकड़ा धीरे-धीरे 1 की तरफ बढ़ रहा है.
अलग-अलग देशों के हिसाब से देखें तो साल 2015 में चीन में गिनी गुणांक 0.82 रहा, भारत में 0.88 रहा और पूरे महाद्वीप में यह 0.90 रहा.