
इंदौर, इंजीनियर, बम, बाबा, घोड़ा... अगर आपसे पूछा जाए कि इनमें क्या समानता है तो आप चौंक जाएंगे, सच तो यह है कि ये शहर और आसपास मिलने वाली जायकेदार कचौरियों के नाम हैं। किसी का नाम उसे बनाने के अलग तरीके पर पड़ा तो किसी का नामकरण उसमें इस्तेमाल किए जाने वाले मसालों के हिसाब से हुआ। किसी कचौरी को उसके खाने वालों की वजह से अलग नाम मिला। जानिए कुछ खास कचौरियों के नामकरण की दिलचस्प कहानियां...
इन कचौरियों पर सर्वे करने वाले फूड ब्लॉगर समीर शर्मा ने हाल ही में अपने शोध को रिन्यू किया है। वो कहते हैं कि सबसे ज्यादा अजीबोगरीब हैं इन कचौरियों के नाम। इंजीनियर, बम, बाबा जैसे नाम सुनकर इंदौर के बाहर शायद ही किसी को यकीन हो कि ये कचौरी जैसे किसी टेस्टी फूड के नाम हैं। बारिश की हल्की फुहारों के बीच भट्टी पर चढ़े कढ़ाव से उतरती गर्मागर्म गोलमटोल सुनहरी कचौरियां... इंदौर में हर दूसरे चौराहे पर ये नजारा आम है और कई बार तो एक चौराहे पर ही कई दुकानों पर दिख जाता है। करारी कचौरियों के ऊपर की परत जितनी कुरकुरी होती है और जो टेस्ट में जितनी जायकेदार और यूनिक होती है उसकी दुकान पर उतनी ज्यादा भीड़ होती है।
इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स की फेवरेट 'इंजीनियर कचौरी'
लैंटर्न चौराहे पर एसजीएसआईटीएस कॉलेज के पास अक्सर इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स की भीड़ जमा रहती है। यहां आलू की कचौरी को हरी चटनी और तली मिर्च के साथ सर्व किया जाता है। संचालक महमूद खान बताते हैं कि यहां ज्यादातर इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स कचौरियों का लुत्फ उठाते हैं, इसलिए इसका नाम 'इंजीनियर कचौरी' पड़ गया।
तीखी सेव वाली राऊ की 'बाबा कचौरी'
खाऊ ठियों की वजह से इंदौर की पहचान तो फूडी सिटी की बन ही गई है, मगर उसके आसपास के क्षेत्रों में भी तरह-तरह की कचौरियां बनती हैं। फूड ब्लॉगर्स के मुताबिक इन चटखारेदार कचौरियों में मूंग दाल, आलू, हरे चने, अजवाइन, लाल मिर्च और भुट्टे की कचौरियां खास हैं। इन्हें सर्व करने का अंदाज भी जुदा है। कोई लहसुन-हरी मिर्च की चटनी इस्तेमाल करता है तो कोई इमली-खजूर की। किसी की खासियत प्याज की चटनी है तो किसी की गाजर-प्याज का कचूमर।
सगड़ी पर बनी 'बम कचौरी'
4 दशक पहले बद्री भैया बाल विनय मंदिर में बच्चों को 'बोल बम" कहकर कचौरियां बेचा करते थे। यहीं से इन्हें 'बम की कचौरी' का नाम मिला। अब उनकी कचौरियां मल्हारगंज और कांच मंदिर के पास मिलती हैं। चार दशक पहले की ही तरह इन्हें अब भी कोयले की सिगड़ी की आंच पर सेंका जाता है।
झन्नाट, भाटे की और घोड़ा कचौरियां
शहर की खास दुकानों पर मिलने वाली झन्नाट कचौरियां उसल के साथ सर्व की जाती हैं। ये इतनी तीखी होती हैं कि कई ग्राहकों को तो एक कचौरी खाने में भी पसीना आ जाता है। भाटे की कचौरी मसाले में मटर, हींग, काली मिर्च, लौंग, अजवाइन, हरी मिर्च और लाल मिर्च मिलाकर बनाई जाती है। इसकी सबसे बड़ी खूबी है इसका कड़क मसाला। जिसके चलते ही इसका नाम भाटा कचौरी पड़ा।
तांगों के दौर में घोड़े भी इन कचौरियों को खाते थे। इसलिए कई लोग इन्हें घोड़ा कचौरी भी कहते हैं। कई जगह फरियाली कचौरी भी मिलती है। खासतौर पर सावन, गणेशोत्सव और नवदुर्गा में इस तरह की कचौरियों का खास क्रेज होता है। इसके अलावा लाल बाल्टी और अनंतानंद समेत कई खास कचौरियां भी शहर की पहचान हैं।