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15 August 2021

क्या है Neeraj Chopra की स्वर्णिम सफलता का रहस्य - सौरभ मिश्रा



एक सप्ताह बीत चुका है और मेरे ऊपर से अभी भी नीरज की सफलता का हैंगओवर उतरा नहीं है. उनकी सफलता से उमड़े ख़ुशी के सागर में मन अभी भी डुबकियां लगा रहा है. लगभग 6 वर्ष बीत चुके हैं जब नीरज से पहली मुलाक़ात हुई थी और इन 6 वर्षो में नीरज नाम का ये सितारा इंडियन एथलेटिक्स के आकाश में सबसे स्वर्णिम आभा से चमक रहा है.

सबके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि ओलिंपिक्स गोल्ड मेडल नीरज को ही क्यों मिला? उनसे पहले भी और आज भी बहुत से ऐसे खिलाड़ी होंगे और हैं जो नीरज जितनी ही मेहनत करते होंगे. फिर नीरज के ऊपर ही ईश्वर का इतना बड़ा आशीर्वाद क्यों आया? इस सवाल का जवाब मैं 3 जीवंत उदाहरण देकर ढूंढ़ने की कोशिश करता हूँ.


पहला - कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने के बाद नीरज की गिनती देश के सबसे बड़े खिलाड़ियों में होने लगी थी. मेरे पास एक बड़ी कंपनी से प्रस्ताव आया कि वो किसी प्रतिभाशाली और परफॉर्मिंग खिलाड़ी को स्पॉन्सर करना चाहते हैं. मेरे जहन में सबसे पहला नाम नीरज का आया क्योंकि वो एशियन और कामनवेल्थ चैंपियन बन चुके थे और मुझे लगा कि नीरज ओलिंपिक मेडल दे सकते हैं. मैंने उनको स्पॉन्सरशिप के लिए फ़ोन किया. कुशल छेम पूछने के बाद नीरज का जवाब आया - भाईसाब मेरी ज़रूरते तो अब पूरी हो रही हैं और मुझे उतनी जरुरत नहीं है. इससे अच्छा है कि आप ( एक सीनियर खिलाड़ी का नाम लेकर ) उनको स्पांसर करा दो, उनको ज्यादा जरुरत है. इतने बड़े दिलवाले नीरज की ये बात सुनकर मैं दंग रह गया. एक दशक के अपने स्पोर्ट्स मैनेजमेंट के करियर में मैंने कई बड़े खिलाड़ियों के साथ काम किया पर ऐसा खिलाड़ी नहीं देखा जो अपने लिए आई हुई स्पॉन्सरशिप को दूसरे को देने का दिल दिखाए.


दूसरा - स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के एक अधिकारी ने मुझे बताया कि कामनवेल्थ में मेडल जीतने के बाद जब वो प्लेयर्स को रिसीव करने के लिए एयरपोर्ट पहुंचे तो उन्होंने और वहाँ खड़े कई लोगों ने नीरज के गले में माला डाली. नीरज ने उस अधिकारी को बोला कि सर (एक प्लेयर का नाम लेते हुए )  उसको भी माला डाल दो. क्या आप सोच सकते हैं कि कामनवेल्थ का गोल्ड मेडल जीतने वाला खिलाड़ी अपने स्वागत में मशगूल ना होकर किसी और खिलाड़ी के बारे में भी सोच रहा है?


तीसरा - एक स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट ने नीरज को इंटरव्यू के लिए बात किया. नीरज ने उस पत्रकार को अपने एक जेवलिन के साथी खिलाड़ी के बारे में बताते हुए उनका इंटरव्यू लेने का सुझाव दिया. आप सोचिये कि अपने साथी खिलाड़ी को अपना प्रतिद्वंदी ना मानकर उसको भी मीडिया कवरेज मिले ऐसा सोचने वाले कितने खिलाड़ी हैं इस देश में!


इन उदाहरणों से आप समझ गए होंगे कि मेहनत, जूनून और जज़्बा रखने के साथ ही सागर जैसे विशाल दिल रखने वाले नीरज की झोली इतनी बड़ी थी कि भगवान ने ओलिंपिक का सोने का तमगा उनकी झोली में गिरा दिया. ऊपर वाले का आशीर्वाद पाने के लिए आपको उसके लायक बनना पड़ता है और नीरज की सोच और मेहनत उनको इस लायक बनाती है.


अपने व्हाट्सप्प की डीपी पर FOCUS का चित्रांकन करने वाले नीरज का अपने गेम पर फोकस इतना रहता है कि वो प्रतियोगिताओं के दौरान अपने कमरे से टीवी हटा देते हैं, लम्बे समय तक फ़ोन बंद रखते हैं, सालों घर वालों से मिल नहीं पाते हैं.


और इस सबसे ऊपर है उनकी विनम्रता. इतने बड़े चैंपियन बनने के बाद भी उनके अंदर रंच मात्र का घमंड नहीं आया. टोक्यो में इतिहास रचने के बाद दिल्ली के ताज होटल में मेरी आँखों के सामने जब उन्होंने व्हील चेयर पर बैठी एक विकलांग महिला के कहने पर उनके साथ फोटो खिचाई तो उनके चेहरे पर वही मुस्कान थी जो एक कुछ घंटे पहले एक बड़े नेता के साथ फोटो खींचाने पर थी वो भी तब जब एक लम्बे थकान भरे दिन के बाद जब उनके साथ फोटो खींचाने के लिए लोगों का ताँता लगा हुआ था, लेकिन नीरज ने किसी को निराश नहीं किया.

जितना मैंने नीरज को जाना है उसके हिसाब से उनके अंदर आगे चलकर इस देश का सबसे महान खिलाड़ी बनने की छमता है. एक ऐसा खिलाड़ी जिसकी चमक से सबकी आँखें चौंधिया जाएंगी. उनकी ब्रांड वैल्यू इस देश के बड़े खिलाड़ियों के बराबर हो गई है. पानीपत की मिट्टी में पैदा हुए किसान के बेटे ने सोने का ऐसा परचम लहराया है जो भारत में खेल की अब तक की सबसे बेहतरीन इबारत लिखने के रास्ते पर है. मेरे जैसे करोड़ों देशवासियों की दुआएँ तुम्हारे साथ हैं नीरज. जिस तरह अर्जुन के तीर से धरती में पानी के फव्वारे फूट पड़े थे उसी तरह तुम्हारे भाले ने हिंदुस्तान की ज़मीन में खेल का वो बीज गाड़ दिया है जिससे निकले पेड़ की छाँव में मेहनत करके कई नीरज माँ भारती के गले को विश्वविजयी सोने के तमगे से विभूषित करेंगे. तुम्हारी जय हो!

 - सौरभ मिश्रा 





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