अगर हम परमात्मा के इस मर्म को समझ लें कि उससे हमें यह शरीर और बुद्धि दूसरों को सुख और सेवा करने के लिए मिला है तो संसार के सारे सुख हमारे अपने होने लगेंगे, लेकिन जब तक हम इनका इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ मैं और मेरे के लिए करते रहेंगे तब तक सुख-दुःख का यह बंधन टूटेगा नहीं और हम अपने या अपनों के मोह में ही उलझे रहेंगे। सुख तो आत्मा में है और आत्मा सर्वव्यापी है इसलिए जब तक हम सबके हित में कार्य नहीं करेंगे तब तक उस शाश्वत सुख से नहीं जुड़ पाएंगे, परमात्मा ने सारी इन्द्रियां और शरीर सिर्फ और सिर्फ दूसरों को सुख पहुंचाने के लिए ही दिया है लेकिन जब तक हम इनका उपयोग स्वयं के आनंद हेतु करते रहेंगे तब तक अपने सही मार्ग से भटके हुए ही माने जाएंगे
