सांसारिक भोग भोगो लेकिन मर्यादित संयमित और आसक्ति रहित होकर । शरीर मन बुद्धि को विषयों का गुलाम मत होने दो क्योंकि सांसारिक विषयों का गुलाम मन केवल रोग और दुःख का कारण है। गुलामी ही करनी है तो परमात्मा की करो सन्तों की करो जो तुम्हें वास्तविक सुख शांति प्रदान कर सकते हैं।और हाँ जिस किसी भी सन्त में ईश्वर के रूप में या नाम में तुम्हारा मन लगता हो उसी एक के प्रति पूर्ण समर्पित होकर उसे अपने हृदय प्राणों में बसा कर देखो , जीवन परमशान्ति परमानन्द से भर जाएगा। कुछ मत छोड़ो बस पूरी तरह ईश्वर को गुरु को पकड़ लो फिर सब अपने आप हो जाएगा। जैसे जैसे ईश्वर में प्रेम बढ़ता जाएगा वैसे वैसे संसार से मन विरक्त होता जाएगा।
जगदम्ब भवानी
कमल महाराज