
बिचौलियों और दलालों को सिर्फ़ सियासी और आर्थिक रोल वाले चश्मे से देखना ठीक नहीं होगा. आज की तारीख़ में आध्यात्म को भी सिर्फ़ ध्यान ही नहीं, ऐसे मध्यस्थों की ज़रूरत होती है. आध्यात्म को ऐसे बिचौलियों की ज़रूरत इसलिए होती है ताकि वो आम लोगों और भगवान-हुक्मरानों के बीच पुल का काम कर सकें.
दुनिया नए दौर से गुज़र रही है. ऐसे में हमारे धर्मगुरुओं और बाबाओं को भी समाज में एक व्यवस्थित रोल के लिए ख़ुद को तैयार करने की ज़रूरत है. ये सिर्फ़ इसलिए ज़रूरी नहीं है कि आज कई बाबा विवादों और स्कैंडल में घिरे हुए हैं और देश में धर्मनिरपेक्षता की महामारी फैल रही है जिसमें धर्मगुरुओं को नीचा दिखाया जाता है बल्कि धर्मगुरुओं को अपने रोल को नए सिरे से इसलिए देखने की ज़रूरत है कि वो जागरूकता और आधुनिकता के इस माहौल में अपने रोल को मज़बूत कर सकें.

समाज का अहम हिस्सा
आज हम गहराई से देखें तो धर्मगुरु और बाबा लोग समाज का अहम हिस्सा हैं. उनका पारिवारिक पुजारियों से बड़ा रोल है. लेकिन, ये बाबा स्वामी नारायण और रमन्ना महर्षि जैसे महान धर्म गुरुओं से कमतर हैं. हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आसाराम, गुरमीत राम रहीम और रामपाल जैसे बाबा सर्विस प्रोवाइडर हैं, यानी वो जनता को ज़रूरी सेवाएं देते हैं.
ज़िंदगी को एक मायने देना और धार्मिक कर्मकांड भी एक प्लंबर और खान-पान जैसी एक सेवा ही है. असल में आज की तारीख़ में ये बाबा शहरी ज़िंदगी, ख़ास तौर से छोटे शहरों और क़स्बों में आम लोगों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन गए हैं. आसाराम और राम रहीम की कामयाबी की कहानियां हमारे दौर की अपेक्षाओं-आकांक्षाओं के पूरे होने की उम्मीद भरी कहानियां हैं. उनके शानदार आश्रमों में देश का मध्यम वर्ग अपने आदर्श और उम्मीदें पूरी होता देखता है.

आश्रम और सत्संग दो अहम पहलू
उत्तर भारत के किसी भी छोटे शहर या क़स्बे में सत्संग, ज़िंदगी का अहम हिस्सा होते हैं. ये लोगों के मेल-जोल और सामाजिक सद्भाव का ज़रिया होते हैं. लोग इन सत्सगों में शामिल होकर ख़ुद को समाज और एक समुदाय का हिस्सा महसूस करते हैं.
किसी बाबा का आश्रम और सत्संग हमारी सामाजिक ज़िंदगी के दो अहम पहलू हैं. बाबा अपने भक्तों को बराबरी, सामाजिक मेल-जोल के ख्वाब दिखाते हैं. दुनियावी चुनौतियों से निपटने की अपनी तकनीकी महारत से वो आम लोगों को भक्ति से ओत-प्रोत कर देते हैं.
इन बाबाओं का ही योगदान है कि आज छोटे शहर, अनजान ठिकाने नहीं हैं. इन बाबाओं की वजह से छोटे शहर भी अब ऐतिहासिक अहमियत हासिल कर रहे हैं. इनकी वजह से ही आज छोटे शहरों में आधुनिकता दस्तक दे रही है. लोगों की ज़िंदगी को मायने मिल रहा है.