
कनाडा की क़ुदरती ख़ूबसूरती के क़िस्से तो आपने ज़रूर पढ़े और सुने होंगे. हो सकता है आपके किसी पंजाबी दोस्त या रिश्तेदार ने भी वहां के क़िस्से कहानियां सुनाई हों. क्योंकि, पंजाब के लोग बड़ी संख्या में वहां रहते हैं.
लेकिन क्या कभी भी किसी ने आपको कनाडा के आख़िरी आर्कटिक गांव 'तुक्तोयकतुक' गांव के बारे में बताया है. ये गांव कनाडा की आबादी वाले इलाक़े से क़रीब 137 किलोमीटर दूर है. हाल ही में बने एक हाइवे ने यहां की तस्वीर ही बदल दी है.
ये इलाक़ा उत्तरी ध्रुव के बेहद क़रीब है. भयंकर ठंड की वजह से न जाने कब से ये इलाक़ा जमा हुआ है. यहां रहने वाले जंगली जानवर ही इस इलाक़े में ज़िंदगी का एहसास कराते हैं. कुछ आदिवासी भी इस बर्फ़ीले इलाक़े में रहते हैं. कनाडा के बिल्कुल उत्तरी छोर वाले इस इलाक़े में तुक्तोयकतुक गांव ही आबाद है.

बर्फ़ से ढंका है यह गांव
चलिए सबसे पहले आपको इस गांव की तर्ज़-ए-ज़िंदगी के बारे में बताते हैं. ये गांव सदियों पुराना है और पूरी तरह बर्फ़ से ढका रहता है. इस इलाक़े में ज़िंदगी बसर करना आम लोगों के बस की बात नहीं है. यहां के लोग बर्फ़ के घरों में ही रहते हैं.
स्थानीय आदिवासियों को 'इनुवीयालुईट एस्किमो' कहा जाता है. कुछ लोग इन्हें इस इलाक़े का रखवाला भी कहते हैं. इनकी आबादी क़रीब 5,700 है जो मेकेंजी नदी के डेल्टा के नज़दीक बसी है. इन्हीं की वजह से यहां के लोगों का रहन सहन पिछली कई सदियों से ऐसा ही है.

शिकार पर जीवन बसर करते लोग
चूंकि यहां खेती संभव नहीं, लिहाज़ा यहां के लोग बुनियादी तौर पर मांसाहारी हैं जो कि लोमड़ियों, आर्कटिक ख़रगोश और वन बिलावों का शिकार करते हैं. इनका गोश्त खाते हैं. इनके फ़र से अपने लिए पोशाक तैयार करते हैं. मौसम गर्म होने पर ये नदी के नज़दीक आकर बस जाते हैं, और सफ़ेद व्हेल पालते हैं. सर्दी के मौसम में ये आर्कटिक आदिवासी इन्हीं व्हेल का शिकार करके उन्हें अपनी ख़ुराक बनाते हैं.
इस बर्फ़ीले वीराने में बारहसिंघों के झुंड यहां ख़ूब देखने को मिलते हैं. साथ ही पहाड़ों के निचले इलाक़ों में लोमड़ियां और भेड़ों के झुंड मिल जाते हैं. यही जानवर इस इलाक़े में यातायात का भी ज़रिया हैं. इनका इस्तेमाल स्लेज में ख़ूब होता है. जिस वक़्त बारहसिंघों के झुंड दौड़ लगाते हैं, दूर-दूर तक इनके पैरों की गूंज सुनाई देती है. लगता है मानो बर्फ़ पर बारिश हो रही है.
हर साल बहार के मौसम में ये सभी जानवर पश्चिमी कनाडा के रिचर्ड्स द्वीप पर आ जाते हैं. यहां वो अपने बच्चों को जन्म देते हैं. इसी मौसम में इनका सामना इंसानों से भी होता है. चूंकि इस मौसम में यहां सैलानी बड़ी संख्या में आने लगते हैं.

हाई-वे किसी जीवन रेखा से कम नहीं
तुक्तोयकतुक गांव टूरिज़्म के लिहाज़ से काफ़ी अहम है. लेकिन यहां तक पहुंचना आसान नहीं. इस इलाक़े की टूरिज़्म की अहमियत समझते हुए ही इनोविक-तुक्तोयकतुक हाइवे का निर्माण किया गया. ये हाइवे नवंबर 2017 में चालू हुआ है. जिसके सबब बर्फ़ में जमे इस इलाक़े की रंगत ही बदल गई है. ये हाइवे तीस करोड़ कनाडियन डॉलर की लागत से बना है. इसे आर्कटिक आइस रोड के नाम से भी जाना जाता है. ये हाइवे दो लेन वाला 137 किलो मीटर लंबा है. इसे बनाने में क़रीब चार साल का समय लगा.
इनुवीयालुईट समाज के लोगों के लिए ये हाई-वे किसी जीवन रेखा से कम नहीं है. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि हाई-वे बनने से यहां के लोगों की संस्कृति बिगड़ने लगी है. अलग-अलग संस्कृति के लोगों के यहां आने से इस गांव के पारंपरिक जीवन पर असर पड़ा है. वो अपना अस्तित्व खो रही है.

हाई-वे से मिली नई जिंदगी
कुछ लोग ये भी मानते हैं कि इस हाई-वे का निर्माण इलाक़े में पाई जाने वाली प्राकृतिक गैस और तेल हासिल करने के लिए किया गया है.
वहीं हाई-वे के समर्थकों का कहना है कि इसके निर्माण से इलाक़े के घुमंतों समाज के लोगों को नई ज़िंदगी मिली है. यहां लोगों की आवाजाही बढ़ने से स्थानीय लोगों के लिए रोज़गार के नए मौक़े पैदा हुए हैं और उनका जीवन स्तर बेहतर हुआ है. सर्दी और गर्मी दोनों ही मौसम में लोग यहां आने लगे हैं. हाई-वे बनने से पहले सर्दी के मौसम में यहां के लोगों का बाहरी दुनिया से संपर्क पूरी तरह टूट जाता था.
रास्ते बर्फ़ से पट जाते थे. बहार के मौसम में जब बर्फ़ पिघलती थी, तभी यहां के लोग निकल पाते थे.

टूरिज़्म एक ताक़तवर ज़रिया
हाई-वे निर्माण में काम करने वाले नोइल कोकनी का कहना है कि हाई-वे बनने से उनका जीवन बहुत आसान हो गया है. एक समय था जब यहां तक हवाई जहाज़ की मदद से ही पहुंचा जा सकता था. या गर्मी के मौसम में नदियों में कश्तियों की मदद ली जा सकती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है.
इंडिजीनस टूरिज़्म एसोसिएशन ऑफ़ कनाडा के बोर्ड मेम्बर केलिक किसोनो टेलर का कहना है कि किसी भी जगह कि परंपरा और संस्कृति बनाए रखने के लिए टूरिज़्म एक ताक़तवर ज़रिया है. मिसाल के लिए रेन्डियरों का शिकार करना यहां के लोगों की पहचान है. और इसके लिए यहां के लोग ख़ास तकनीक का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन स्थानीय लोगों के यहां से पलायन की वजह से ये परंपरा ख़त्म सी होती जा रही थी. अब चूंकि लोगों को अपने ही इलाक़े में रोज़गार मिलने लगा है, तो वो यहीं रह कर पारंपरिक जीवन जीना पसंद कर रहे हैं. यही नहीं अब लोग ये कला सैलानियों को भी सिखाते हैं.

इस हाईवे से सफ़र करना जन्नत के नज़ारे का सफ़र करने से कम नहीं है. रास्ते में कहीं बर्फ़ से ढके पेड़ों की कतारें नज़र आएंगी तो कहीं गहरे नीले रंग वाली जमी हुई नदियां नज़र आएंगी. वहीं कहीं आसमान और ऊंचे पहाड़ एक दूसरे से बातें करते नज़र आएंगे.
बदलाव को हमेशा हर कोई स्वीकार नहीं करता. मुख़ालिफ़ आवाज़ें हमेशा ही उठती हैं. कुछ ऐसा ही इस हाई-वे के साथ भी है. लेकिन इस हाई-वे ने एक ही मुल्क के दो ऐसे इलाक़ों को जोड़ने का काम किया है, जिससे लोग अनजान थे. इस हाई-वे की वजह से ही ना सिर्फ़ स्थानीय लोगों की ज़िंदगी बेहतर हुई है बल्कि शहरी लोगों को भी घुमंतुओं की ज़िंदगी, उनकी परंपरा और रिवायतें समझने का मौक़ा मिला है.