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30 October 2025

रामचरित मानस जनता का संविधान है: प्रो आदित्य पी त्रिपाठी




कमला नेहरू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग एवं संस्कृति संज्ञान द्वारा आयोजित तुलसी जयंती के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘ राष्ट्रवाद और श्रीरामचरितमानस ’ सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई । संगोष्ठी का प्रारंभ दीप प्रज्ज्वलन और मंगलाचरण से शुरू हुआ ।  

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. आदित्य पी. त्रिपाठी, वाणिज्य विभाग श्यामलाल कॉलेज (सांध्य) , श्री गौरव ललित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार विशिष्ट अतिथि के रूप में एवं श्री अनिल पांडेय , वरिष्ठ पत्रकार निदेशक , इंडिया फॉर चिल्ड्रेन अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित थे । कार्यक्रम के आरंभ में कालेज की प्राचार्य प्रो पवित्रा भारद्वाज ने रामचरित मानस के महत्व को बताते हुए कहा कि आज भी यदि कोई समस्या और घबराहट होती है तो मैं दोहे- प्रबसि नगर कीजे सब काजा को  दोहरा  लेती हूं तो सारी समस्याओं का समाधान हो जाता है।  रामचरित मानस हमें न केवल अनुशासन सिखाता है बल्कि जीवन के हर कदम पर हमारा मार्गदर्शन करता है।

प्रो. आदित्य पी. त्रिपाठी ने कहा कि रामचरितमानस को समझने के लिए हमें पहले ‘राम’ को जानना होगा । त्रिपाठी जी ने श्री राम वंश परंपरा का उल्लेख किया । मानस का प्रत्येक पात्र महत्वपूर्ण हैं । संविधान में समानता की बात कही गई हैं। यही बात रामचरितमानस में भी है कि सभी जन समान है । व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज और राष्ट्र बनता है ।

उन्होंने रामचरितमानस के विभिन्न दोहों चौपाइयों का वर्णन किया और उनका अर्थ विभिन्न संदर्भों में बताते हुए गंभीरतापूर्वक विवेचन किया । हमारे मन में राम और रावण दोनों विद्यमान है । सुमति और कुमति के माध्यम से उन्होंने वर्णन किया । भक्ति के नौ रूपों को भी उन्होंने बताया ।



श्री गौरव ललित शर्मा ने बताया कि रामचरितमानस में सात काण्ड है । प्रत्येक काण्ड से जुड़ी कथा का उन्होंने वर्तमान संदर्भ में प्रयोग करके  बड़े ही रोचक ढंग से सामने रखा ।

कार्यक्रम के आयोजक डॉ. प्रदीप कुमार सिंहल ने कहा कि सभी वक्ताओं ने बड़े ही गंभीर और सार्थक ढंग से अपनी बात रखी है । मानस के माध्यम से अपने जीवन में सकारात्मक मान्यताओं को स्थान दें । जीवन में समरसता का समावेश इसी के माध्यम से किया जा सकता है। विभिन्न महाविद्यालयों में किये जा रहे । ‘संस्कृति संज्ञान’ के कार्यों को विस्तार से बताया ।

श्री अनिल पांडेय ने कहा कि हम जीवन कैसे जिएं , हमारा राष्ट्र कैसा हो हमारे कर्तव्य , अधिकार , आदर्श न्याय व्यवस्था कैसी हो , इन सभी का उत्तर रामचरितमानस में है । हमारे पूर्वज रामचरितमानस ही सुनकर बड़े हुए और वही चौपाइयां , दोहे आज भी हमारा मार्गदर्शन करती है । सुग्रीव , बाली के प्रसंग को भी बताया । रामचरितमानस के विविध प्रसंगों को ‘सिंदूर ऑपरेशन’ से भी जोड़कर वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता सिद्ध की ।  कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन हिंदी विभाग की प्रभारी डॉ साधना अग्रवाल ने करते हुए कहा कि रामचरितमानस को केवल धार्मिक ग्रन्थ न मानें बल्कि इस आदर्श के रूप में मानकर जीवन में उतारें । अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया डॉ कुमारी अनीता ने।

वक्ताओं के वक्तव्य के पश्चात दोहा वाचन प्रतियोगिता के प्रतिभागियों को पुरस्कार और प्रमाणपत्र वितरित किए गए और विजेताओं ने अपने दोहे का वाचन भी किया ।

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