निशांत द्विवेदी, विंध्याचल
प्राचीन भारत के सप्तकुल पर्वतों में से एक है यह पर्वत । विंध्य' शब्द की व्युत्पत्ति 'विध्' धातु से कही जाती है। भूमि को बेध कर यह पर्वतमाला भारत के मध्य में स्थित है। यही मूल कल्पना इस नाम में निहित जान पड़ती है। विंध्य की गणना सप्तकुल पर्वतों में है। विंध्य का नाम पूर्व वैदिक साहित्य में नहीं है। इस पर्वत श्रंखला का वेद, महाभारत, रामायण और पुराणों में कई जगह उल्लेख किया गया है।
विंध्य पहाड़ों की रानी विंध्यवासिनी माता है।
मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर (मिर्जापुर, उ.प्र.) श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल।विध्यांचल पर्वतश्रेणी पहाड़ियों की टूटी-फूटी श्रृंखला है, जो भारत की मध्यवर्ती उच्च भूमि का दक्षिणी कगार बनाती है। यह पर्वतमाल भारत के पश्चिम-मध्य में स्थित प्राचीन गोलाकार पर्वतों की श्रेणियां है, जो भारत उपखंड को उत्तरी भारत व दक्षिणी भारत में बांटती है। इस पर्वतमाला का विस्तार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, बिहार तक लगभग 1,086 कि.मी. तक विस्तृत फैला है। हालांकि इसकी कई छोटी बड़ी पहाड़ियों को विकास के नाम पर काट दिया गया है। इन श्रेणियों में बहुमूल्य हीरे युक्त एक भ्रंशीय पर्वत भी हैं।