अशोक कुमार सिंह
बायो टेक्नोलॉजी (जैव प्रौद्योगिकी)
जब से वैज्ञानिक खेती होने लगी है, तब से खेत, खेती और खेतिहर को बचाने की चुनौती बन चुकी हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था मूल रूप से कृषि पर ही निर्भर है। भारत में आजादी के कुछ दशक बाद ही सबसे बड़ी समस्या देश की बढ़ती आबादी के सामने भूखमरी था। जिससे निपटने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री ने कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति (ग्रीन रिवॉल्यूशन) को सफलता के साथ अपनाया जिसके परिणाम स्वरूप हरित क्रांति एक अभिशाप और वरदान दोनों साबित हो रहा है।
आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी कृषि प्रधान देश भारत में एक सवाल खड़ा है कि हमारे देश भारत में न कृषि योग्य जमीन बचा है, ना कृषि कार्य में लगे किसान खुश हैं, नहीं किसान को फसल का लाभकारी मूल्य मिल रहा हैं, और न ही हमारे किसानों द्वारा ऊपजाया गया खाद्यान्न (अनाज, फल - सब्जी) खाने योग्य बचा है। इसका मुख्य कारण आज के आधुनिकतम खेती के क्षेत्र में भारत सरकार खासकर कृषि में विश्व युद्ध लड़ने जैसी तैयारी करती है लेकिन उसे विफलता हासिल हो रहा है।
भारत देश में कृषि सबसे बड़ा उद्योग और रोजगार सृजित करने वाला स्रोत है। इसमें रोजगार की असीम संभावनाएं हैं, जिसमें कई प्रकार के उद्योग स्थापित कर बेरोजगारों को रोजगार देने का काम किया सकता है। 21वीं सदी में कृषि ही एक ऐसा उपाय या संसाधन हैं जिससे तेजी से बढ़ रही आबादी (जनसंख्या) का रोजगार, पालनहार के रूप में जीविकोपार्जन करने का संसाधन माना जा रहा है।
खेत यानि खेती करने योग्य जमीन लोग अपनी सुविधाओं के लिए लगातार पेड़ों की कटाई किया जा रहा है, जिससे पर्यावरण असंतुलित हो रहा है तथा जमीन बंजर होने के कगार पर हैं। भारत देश हरित क्रांति के द्वारा खाद्यान्न पर आत्मनिर्भर होने के लिए अंधाधुंध रासायनिक उर्वरक एवं रसायनों का उपयोग कृषि क्षेत्र में कर रही है जिसका परिणाम वातावरण में जल, वायु एवम् मृदा प्रदूषण हो रहा है, जिसको बचाने की आवश्यकता है। ग्लोबल वार्मिंग मौसम में बढ़ते तापमान असामान्य परिवेश एवं खेती में रासायनिक खाद, कीटनाशक के अनियंत्रित प्रयोग के कारण जमीन जहरीली व बंजर होती जा रही है। इससे खेत एमएमकी उर्वराशक्ति भी नष्ट हो रही है पिछले कई दशकों में जिस तरह अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों रसायनों एवं अन्य का प्रयोग हुआ है जिसके फलस्वरूप ना केवल मिट्टी बल्कि पर्यावरण जल व प्रकृति के सभी जीवो को हानि हुई है पिछले कुछ दशको से कृषि में आधुनिकतम यांत्रीकरण का जब प्रयोग शुरू हुआ तो गहरी जुताई नहीं होने के कारण मृदा में जल धारण करने की क्षमता घट गई, जैसे रोटावेटर से खेत की अच्छी जुताई नहीं हो पाती है, मिट्टी तो हल्की हो जाती है लेकिन 6- 8 इंच नीचे की मिट्टी धीरे-धीरे ठोस होते जा रहा है जिसके कारण मिट्टी में रंध्रकाश यानि सूक्ष्म छिद्र का अभाव होता हैं। परिणामस्वरूप हवा, पानी एवम् पोषक तत्वों का अवशोषण नहीं कर रहा है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति धीरे धीरे घटती जा रही है। इस समस्या से निपटने के लिए मृदा प्रबंधन और गहरी जुताई अत्यंत आवश्यक है। मृदा को उपजाऊ रखने के लिए हरी खाद(ग्रीन मैन्योर), वर्मी कंपोस्ट, जैविक खाद इत्यादि का प्रयोग करना अनिवार्य है।
खेती (फसल) हरित:-
क्रांति के बाद देश में अधिक से अधिक खाद्यान्न उत्पादन की होड़ मे अपने देश की बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा मृदा के बाद खाद्यान्न फसल का सबसे बड़ा नुकसान हुआ। देशी घरेलू बीज में पाए जाने वाले मुख्य गुण, पोषक तत्वों समाप्त हो गया। हाइब्रिड संकर किस्म की विदेशी बीज ने बाजारीकरण कर देश भर में खाद्यान्न के उत्पादन में वृद्धि की लेकिन उस में पाए जाने वाले गुणवत्ताओं का विघटन के कारण सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य संबंधी अनेकों बीमारी मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर एवं कुपोषण का कारण बना। आज हमें देशभर में बिगड़ते स्वास्थ्य एवं कुपोषण से बचाव के लिए पोषक तत्व युक्त बीजों का उपयोग करने की जरूरत है जिससे हमारी खेती बची रहे। भारत सरकार देश भर में लाखों किसानों को किसान सम्मान निधि नहीं देकर मनरेगा योजना से खेती कार्य में लगे मजदूर की कार्य दिवस राशि सहायता दे इस काम से रोजगार सृजित किया जा सकता हैं और खेती को लाभकारी बनाकर बचाया जा सकता हैं।
खेतिहर (किसान)
देश में विज्ञान के निरंतर विकास बदलाव से हरित क्रांति के बाद आत्मनिर्भर बनने में कृषि के क्षेत्र में काफी बदलाव आया जिससे किसानों का लगातार लागत में वृद्धि हुई लेकिन कृषि से होने वाले आय में ह्रास हुआ जैसे पहले प्राकृतिक रूप से जैविक खाद, देसी बीज एवं इतना अधिक रसायनों का प्रयोग नहीं होता था लेकिन नित्य नए प्रयोग ने सबसे पहले किसान को प्रभावित किया और किसान पुरानी पद्धति हल- बैल छोड़कर आधुनिक युग में मशीनीकरण/यांत्रीकरण अपनाएं जिससे खेती महंगा व घाटे का सौदा साबित हुआ और आज कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या करने लगे। इसमें सरकार ने बहुत कुछ प्रयास किया भी लेकिन इसका लाभ वास्तविक किसानों को नहीं मिल कर बिचौलिया तक सिमट गया जैसे कृषि के क्षेत्र में मिलने वाला अनुदान धारातल तक नहीं पहुंच कर मुट्ठी भर लोगों में सिमट गया, जैसा कि हम जानते हैं भारत सरकार देश में सुरक्षा के बाद कृषि पर ही अपना बजट केंद्रित करता है लेकिन जमीनी स्तर से अध्ययन का अभाव है। अब एक सवाल आती है कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में क्या कृषि योग्य जमीन बचा ? क्या कृषि कार्य में लगे किसान खुश हैं? न ही किसान फसल का किसानों को फसल का सही लाभ मिल पाता है, न ही हमारे देश का कोई भी खाद्यान्न अनाज फल सब्जी खाने योग्य बचा है।
हमारा सबसे बड़ा सवाल है कि क्या हम बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी और गिरते स्वास्थ्य को कृषि क्षेत्र में सुधारकर पुन: अपनी खोई हुई प्राकृतिक संपदा मृदा (खेत), फसल (खेती), किसानों (खेतिहर) के स्वास्थ्य में सुधार ला सकते हैं, यदि हां तो फिर हम पीछे कहां रह गए और क्यों रह गए हैं।
अशोक कुमार सिंह की कलम से
