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24 October 2022

हेट स्पीच को लेकर "सुप्रीम" फटकार

 


                                                                  हाइलाइट्स :-

                                      न्यूज चैनल भड़काऊ बयानबाजी का प्लेटफॉर्म - एसीसी

                                      प्रेस की आजादी अहम, लेकिन रेगुलेशन की दरकार

                                     बिना रेगुलेशन के टीवी चैनल हेट स्पीच का जरिया

नफरती बयान यानी हेट स्पीच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है. एससी ने पूछा कि हम धर्म के नाम पर कहां आ पहुंचे हैं? हमें एक धर्मनिरपेक्ष और सहिष्णु समाज होना चाहिए, लेकिन आज घृणा का माहौल है. सामाजिक तानाबाना बिखरा जा रहा है. हमने ईश्वर को कितना छोटा कर दिया है. हम उनके नाम पर सड़ रहे हैं. खासकर न्यूज चैनलों पर चलने वाले डिवेट ने देश की फिजा को और खराब कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा वो हमारे समाज को सोचने के लिए मजबूर करता है कि हम कहां आ गए हैं. 

देश में पहले बात होती थी विकास की. नेताओं में दुर्दशिता हुआ करता था. नेता मतलब समाज को लेकर चिंता करने वाला लेकिन अब सियासत का मतलब बदल गया है.  सियासत ने एक करवत सा ले लिया है. धीरे -धीरे राजनीति में गंदगी आते चला गया. सुप्रीम कोर्ट के बयान से तो ऐसा ही लगता है. न्यूज चैनलों के डिवेट में गाली गलौज करना आम बात हो गया है. 

 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यूज चैनल भड़काऊ बयानबाजी का प्लेटफार्म बन गया है,  प्रेस की आजादी अहम है, लेकिन बिना रेगुलेश्न के टीवी चैनल हेट स्पीच का जरिया बन गया है. सिब्बल ने बेंच के सामने भाजपा नेताओं के बयानों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि सांसद प्रवेश वर्मा ने मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की बात कही. उसी कार्यक्रम में एक और नेता ने गला काटने जैसी बात कही. लगातार ऐसे कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, जिसका मकशद ही नफरत फैलाना है. सुप्रीम कोर्ट ने धर्म संसद मामले में जो आदेश दिए थे, उनका कोई असर होता नहीं दिख रहा है. लाइव टीवी डिवेट में बीजेपी के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कांग्रेस नेता आलोक शर्मा को दल्ला कहा है, और ये कोई पहला मामला नहीं है.  इससे पहले भी संबित पात्रा सहित कई अन्य प्रवक्ता द्वारा कांग्रेस नेताओं के साथ टीवी डिवेट में गाली गलौज किया गया है. देश को धर्म संसद जैसे आयोजनों की जरूरत है क्या? जिस तरह का बयान आने लगा है उससे तो यही लगता है कि ऐसे आयोजनों की कोई  जरूरत नहीं है. या तो सरकार रोक लगाए या फिर माननीय सुप्रीम कोर्ट रोक लगाए.

आपको बता दें कि देश का लिट्रेसी रेट लगभग 80 प्रतिशत है.  फिर भी अगर हम जाति धर्म के नाम पर लड़ते हैं तो ये सवाल है कि क्या हम शिक्षित हैं ? देश की विकास की बात कोई क्यों नहीं कर रहा है? क्यों चुनाव जाति धर्म के नाम पर लड़ा जा रहा है, और जीता भी जा रहा है. देश में जो बिकेगा नेता उसे बेचेंगे ही लेकिन जिम्मेदारी आम लोगों की भी है.  देश की फिजा में गंदगी फैलाने का काम करना बंद नहीं हुआ तो वो आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत खतरनाक है. ऐसे बयानों पर अगर पार्टी संज्ञान नहीं लेगी तो फिर न्यायालय को हस्तक्षेप करना ही होगा. और इसी कड़ी में एससी ने यूपी और उत्तराखंड सरकार को हेट स्पीच को लेकर नोटिस भेजा है. साथ ही कोर्ट ने सरकार से कहा है कि आप कार्रवाई करें अन्यथा कोर्ट को हस्पक्षेप करना होगा.

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