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19 August 2021

इस मंदिर में मिला है प्रसाद के रूप में मटन, जानें मंदिर का इतिहास

 


देश में फैले कोरोना महामारी के कहर के चलते मंदिरों का माहौल काफी बदला बदला देख रहा है लेकिन इसके बावजूद भी मंदिरों में मां की पूजा अर्चना करने के लिए भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है तो चलिए हम आपको बताते हैं कि यूपी के प्रसिद्ध मंदिर जहां आप जाकर माता के दर्शन कर सकते हैं…. मां पाटन देवी मंदिरउत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के तुलसीपुर में मां पाटन देवी मंदिर है। यह मंदिर बलरामपुर से 29 किलोमीटर, गोंडा से 65 किलोमीटर, गोरखपुर से 150 किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसा कहा जाता है कि पटेश्वरी माता अपने भक्तों की हर कामना को जरूर पूरा करती हैं। मां ललिता देवी का प्रसिद्ध मंदिर राजधानी लखनऊ से 90 किलोमीटर दूर मां ललिता देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। सीतापुर के मिश्रिख के पास नैमिषधाम स्थित मां ललिता देवी का भव्य मंदिर है। मान्यता है कि यहां मांगी गयी हर मुराद पूरी होती है। मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिरमां शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। वाराणसी के अलईपुर क्षेत्र में मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर है। मां के इस मंदिर की मान्यता है कि नवरात्र के पहले दिन इनके दर्शन से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। मां के दर्शन मात्र से ही वैवाहिक कष्ट दूर हो जाते हैं। कालीबाड़ी मंदिरबरेली में कालीबाड़ी मंदिर काफी पुराना है। यहां के शाहमतगंज इलाके में स्थित इस मंदिर में भक्तों का लंबी कतारें लगी रहती हैं। यहां हर सोमवार और शनिवार यहां भक्तों की काफी भीड़ होती है। लोगों की मनोकामना भी पूरी होती है। मां चन्द्रिका देवी का धामराजधानी लखनऊ में मां चन्द्रिका देवी का धाम है। यहां हर दिन हजारों भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं और नवरात्र के 9 दिनों तक भक्तों की अच्छी खासी भीड़ लगी रहती है। मनोकामना पूरी करने के लिए भक्त मां के दरबार में आकर मन्नत माँगते हैं, चुनरी की गांठ और मंदिर परिसर में घंटा बांधते हैं। मां बारा देवी मंदिरयूपी के कानपुर में बारा देवी मंदिर यहां सालों से भक्तों का तांता लगता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां स्थापित देवी मां की मूर्ति 1700 साल पुरानी है। तरकुलहा मंदिरयूपी के गोरखपुर से 20 किलोमीटर दूर तरकुलहा मंदिर है। इस मंदिर का इतिहास भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है। ये एकमात्र मंदिर है, जहां प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता हैं। यहां पर बकरे की बलि चढ़ाई जाती है। इसके बाद बकरे के मांस को मिट्टी के बरतनों में पकाकर प्रसाद के रूप में बांटा जाता हैं।

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