निशांत द्विवेदी -
निर्जला एकादशी का व्रत विधान करके कैसे आप अपनी समस्याओं से मुक्त हो सकते हैं और भगवान विष्णु की कृपा पा सकते है. ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी और भीमसेनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस एकादशी व्रत में पानी पीना वर्जित माना जाता है इसलिए इस एकादशी को निर्जला कहते है. निर्जला एकादशी पर निर्जल रहकर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है और दीर्घायु और मोक्ष का वरदान प्राप्त किया जा सकता है.
निर्जला एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी एकादशी का व्रत फल मिलता है और भगवान विष्णु की कृपा होती है.निर्जला एकादशी का व्रत एक दिन पहले अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही आरम्भ हो जाता है और रात्रि में अन्न का सेवन नहीं किया जाता है. निर्जला एकादशी के व्रत में सूर्योदय से लेकर अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्य उदय तक जल और भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है.
निर्जला एकादशी के दिन प्रात काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु की पीले चंदन पीले फल फूल से पूजा करें और पीली मिठाई भगवान विष्णु को अर्पण करें. एक आसन पर बैठकर ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का 108 बार जाप करें. जाप के बाद गुलाब या आम के शरबत का भोग भगवान विष्णु को लगाएं और जरूरतमंद लोगों में बांटे. ऐसा करने से मन की इच्छा पूरी होगी और पारिवारिक कलह क्लेश खत्म होंगे.