राजनीति का नाम आते ही चाणक्य का नाम दिमाग में आता है। 23 सौ साल बीत जाने के बावजूद लोग उनकी बातों को नहीं भूले। लेकिन आज के दौर में अगर चाणक्य होते तो राजनीति देखकर कन्फ्यूज हो जाते, जरा सोचिए भाई-भाई में मनमुटाव हो गोतिया-दियाध से झगड़ा हो गांव-गांव में वोट को लेकर अनबन हो। सालों लग जाते हैं जख्म भरने में लेकिन अपने आदर्श नेताओं को देखिए . दिनभर एक-दूसरे को गाली देते हैं। लेकिन शादी विवाह तो छोड़िए छोटे-छोटे फंक्शन में गलबहियां डाले दिख जाएंगे। बिहार की राजनीति में लालू-नीतीश-रामविलास और सुशील मोदी को धूरी माना जाता है. सब एक-दूसरे की कब्र खोदने में लगे रहते हैं। लेकिन जहां जरुरत हो एक-दूसरे की बाहें थामे दिख जाएंगे.
फिर आप तो सिर्फ इनके समर्थक हैं तो फिर कुत्तों की तरह क्यों लड़ते-झगड़ते हैं। आज के ये नेता ही हैं जो समाज को अस्थिर करके खुद को स्थापित करने में जुटे रहते हैं। लालू जी की बेटे की शादी तो ताजा उदाहरण है. कई ऐसी शादियां और समारोह आपने देखे होंगे। जहां ये गलबहियां करते दिख जाएंगे। तो आगे से ख्याल रखिएगा। अपने दोस्त को यादव, राजपूत, पासवान और फलना-ढेकना कहकर गाली मत दीजिएगा। क्योंकि जिसके लिए आप मनमुटाव कर लेते हैं। वो सब तो एक ही हैं जी, मिले हुए हैं जी एक छोटा सा प्रयास कविता के जरिए।
राजनीति के खेल निराले, बेईमान बने जनता के रखवाले
अभिनेता भी शरमा जाएं, ऐसे हैं नेताओं के गड़बड़ झाले
नित दिन करते एक-दूसरे की निंदा, समय देख गले मिल जाते
'मैं'-'मैं' करके लोकतंत्र को इन्होंने ही गर्त में डाला
सामाजिक परंपराओं का नेताओं ने दीवाला निकाल
कैसे भी हो अपने जीवन का उन्नयन
देखो-देखो भाई जनता राजनीति के कैसे खेल निराले।
सौं. राजीव विमल
आशीष तिवारी

